Manu Smriti
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ये कार्यिकेभ्योऽर्थं एव गृह्णीयुः पापचेतसः ।तेषां सर्वस्वं आदाय राजा कुर्यात्प्रवासनम् ।।7/124

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. ‘‘जो राजपुरूष अन्याय से वादी - प्रतिवादी से गुप्त धन लेके पक्षपात से अन्याय करे उसका सर्वस्व हरण करके, यथायोग्य दण्ड देकर, ऐसे देश में रखे कि जहां से पुनः लौटकर न आ सके । क्यों कि यदि उसको दण्ड न दिया जाये तो उसको देखके अन्य राज पुरूष भी ऐसे दुष्ट काम करेंगे और दण्ड दिया जाये तो बचे रहेंगे ।’’ (स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
पापी मन वाले वे रिश्वतखोर और ठग राजपुरूष यदि काम कराने वालों और मुकद्दमे वालों से धन अर्थात् रिश्वत ले ही लें तो उनका सब कुछ अपहरण करके राजा उन्हें देश निकाला दे दे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
और, जो पापी अन्यायी राजपुरुष वादी-प्रतिवादियों से घूंस ले, उनका सर्वस्व हरण करके उन्हें ऐसे देश में रखे कि जहां से पुनः लौट कर न आ सकें।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(ये पाप चेतस) जो पापी लोग (कामिकेभ्य) काम वालो से (उनका सब माल जप्त करके राजा कुर्यात प्रवासनम) राजा उनको देश से निकाल दे ।
 
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