Manu Smriti
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नगरे नगरे चैकं कुर्यात्सर्वार्थचिन्तकम् ।उच्चैःस्थानं घोररूपं नक्षत्राणां इव ग्रहम् ।।7/121

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
‘‘बड़े - बड़े नगरों में एक - एक विचार करने वाली सभा का सुन्दर, उच्च और विशाल जैसा कि चन्द्रमा है, वैसा एक - एक घर बनावें । उसमें बड़े - बड़े विद्यावृद्ध कि जिन्होंने विद्या से सब प्रकार की परीक्षा की हो, वे बैठकर विचार किया करें । जिन नियमों से राजा और प्रजा की उन्नति हो वैसे - वैसे नियम और विद्या प्रकाशित किया करें ।’’ (स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
राजा बड़े - बड़े प्रत्येक नगर में एक - एक जैसे नक्षत्रों के बीच में चन्द्रमा है इस प्रकार विशाल और देखने में प्रभावकारी भयकारी अर्थात् जिसे देखकर या जिसका ध्यान करके प्रजाओं में नियमों के विरूद्ध चलने में भय का अनुभव हो जिस में सब राजाओं के चिन्तन और व्यवस्था का प्रबन्ध हो ऐसा ऊंचा भवन अर्थात् सचिवालय बनावे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
बड़े-बड़े नगरों में नक्षत्रों में चन्द्रमा के समान विचार-सभा का एक एक सुन्दर-उच्च और महाविशाल सभा-भवन बनवावे, जिसमें बड़े-बड़े विद्यावृद्ध, कि जिन्हों ने विद्या से सब प्रकार की परीक्षा की हो, बैठ कर विचार किया करें, और उन-उन नियमों और विद्याओं को प्रकाशित किया करें।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
नगर नगर में एक सब के शुभचितक को नियत करे । यह बडी पदवी वाला घोर रूप् अर्थात रोबदार और नक्षत्रो मे ग्रहो के समान तेजस्वी होना चाहिये ।
 
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