ताभ्यां स शकलाभ्यां च दिवं भूमिं च निर्ममे ।मध्ये व्योम दिशश्चाष्टावपां स्थानं च शाश्वतम् । ।1/13 यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
उन दो टुकड़ों से ब्रह्म ने सतोगुण और पृथ्वी अर्थात् तमोगुण को बनाया, फिर उन दोनों के बीच में आकाश अर्थात् रजोगुण और आठों दिशायें-जीवों के रहने का स्थान-बनाया।