Manu Smriti
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राष्ट्रस्य संग्रहे नित्यं विधानं इदं आचरेत् ।सुसंगृहीतराष्ट्रे हि पार्थिवः सुखं एधते ।।7/113

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
प्रजा की उन्नति के लिये नित्य नियम तथा नीति का पालन करें। जिस राजा की प्रजा ने भली भांति उन्नति पायी हो उसी प्रकार के कार्य करने वाला राजा उन्नति पाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. ‘‘इसलिए राजा और राजसभा राजकार्य की सिद्धि के लिए ऐसा प्रयत्न करें कि जिससे राजकार्य यथावत् सिद्ध हों । जो राजा राज्यपालन में सब प्रकार तत्पर रहता है उसको सदा सुख बढ़ता है ।’’ (स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
इसलिए राजा राष्ट्र की रक्षा व्यवस्था एवं अभिवृद्धि के लिए सदैव इस निम्न वर्णित व्यवस्था (११४ - १४४) को लागू करे क्यों कि सुरक्षित एवं समृद्ध तथा व्यवस्थित राष्ट्र वाला राजा ही सुखपूर्वक रहते हुए बढ़ता है - उन्नति करता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इसलिए राजा को चाहिए कि वह राष्ट्र की रक्षा के लिए निम्न उपाय वर्ते। क्योंकि जो राजा सम्यक्तया अपने राज्य की रक्षा करता है, वह सुखपूर्वक बढ़ता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
राष्ट्र के सग्रंह मे नित्य इस विधान का आचरण करें । वही (पाथिव) राजा सुख पाता है जो राष्ट्र का अच्छा संगह करता है।
 
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