Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस प्रकार शरीर को दुःख देने से प्राण को दुःख होता है उसी प्रकार राज्य अर्थात् प्रजा के दुःखी होने से राजा का प्राण दुःख पाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जैसे प्राणियों के प्राण शरीरों को कृशित करने से क्षीण हो जातें हैं वैसे ही प्रजाओं को दुर्बल करने से राजाओं के प्राण अर्थात् बलादि बन्धुसहित नष्ट हो जाते हैं ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जैसे शरीरों को निर्बल करने से प्राणियों के प्राण क्षीण हो जाते हैं, वैसे प्रजाओं को दुर्बल करने से राजाओं के प्राण नष्ट हो जाते हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जैसे प्राणायों के प्राण शरीर के दुबला होने से क्षीण हो जाते है इसी प्रकार राष्ट के दुबला होने से राजाओ के प्राण क्षीण हो जाते है ।