Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस प्रकार किसान अन्न की रक्षा करता है तथा घास आदि निकाल डालता है उसी प्रकार राजा की रक्षा करें और शत्रुओं को नष्ट करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जैसे धान्य का निकालने वाला छिलकों को अलग कर धान्य की रक्षा करता अर्थात् टूटने नहीं देता है वैसे राजा डाकू - चोरों को मारे और राज्य की रक्षा करे ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जैसे खेती को निलाने वाला व धान्य का निकालने वाला तृणादिकों को उखेड़ फैंकता है या भुस को अलग कर देता है और धान्य की रक्षा करता है, उसे खराब या टूटने नहीं देता, वैसे राजा को चाहिए कि वह चोर-डाकुओं को मारे और राष्ट्र की रक्षा करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यथा निर्दात) जैसे खेत नराने वाला (कक्षम उद्धरति) धास आदि को उखाड डालता है (धान्यम च रक्षति) और अन्न के पौधो की रक्षा करता है (तथा नृप् राष्ट रक्षेत) उसी प्रकार राजा राज्य की रक्षा करे (इन्यात च परिपन्थिनः) और विरोधियों का नाश करे ।