Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेयो धर्मशास्त्रं तु वै स्मृतिः ।ते सर्वार्थेष्वमीमांस्ये ताभ्यां धर्मो हि निर्बभौ । । 2/10

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वेद-शास्त्रों पर व्यर्थ तर्क करके उनके उल्टे अर्थ नहीं लगाने चाहिये, क्योंकि इन्हीं दोनों से धर्म निकला है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
श्रुतिः तु वेदः विज्ञेयः श्रुति को वेद समझना चाहिए, और धर्म - शास्त्रं तु वै स्मृतिः धर्मशास्त्र को स्मृति समझना चाहिए ते ये श्रुति और स्मृति शास्त्र सर्वार्थेषु सब बातों में अमीमांस्ये तर्क न करने योग्य हैं अर्थात् इनमें प्रतिपादित बातों का तर्क के द्वारा खण्डन नहीं करना चाहिए हि क्यों कि ताभ्याम् उन दोनों प्रकार के शास्त्रों से धर्मः धर्म निर्बभौ उत्पन्न हुआ है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(श्रुतिः तु वेदः विज्ञेयः) वेद को श्रुति जानिये। (धर्मशास्त्रं तु वै स्मृतिः) और धर्मशास्त्र को स्मृति। (ते सर्व-अर्थेषु अमीमांस्ये) यह दोनों, वेद और स्मृति, सब बातों में संदेह रहित अर्थात् निश्चित है। (ताभ्यां) इन दोनों से ही (धर्मः हि निर्बभौ) धर्म का प्रकाश होता है।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
श्रुति को वेद और स्मृति को धर्मशास्त्र कहते हैं। ये दोनों सब कर्तव्याकर्तव्य विषयां में निर्विवाद हैं, क्योंकि इन से कर्म-धर्म प्रकटित हुआ है।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS