Manu Smriti
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यदि ते तु न तिष्ठेयुरुपायैः प्रथमैस्त्रिभिः ।दण्डेनैव प्रसह्यैताञ् शनकैर्वशं आनयेत् ।।7/108

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. यदि वे शत्रु डाकू, चोर आदि पूर्वोक्त साम, दाम, भेद इन तीन उपायों से शान्त न हों या वश में न आयें तो राजा इन्हें दण्ड के द्वारा ही बलपूर्वक सावधानीपूर्वक वश में लाये । ‘‘और जो इनसे वश में न हों तो अतिकठिन दण्ड से वश में करे ।’’ (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यदि वे डाकू-लुटेरे पहले तीन उपायों से अपनी चालों से बाज न आवें, तो अन्त में उन्हें क्रमशः कोमल, कठोर और अतिकठोर दण्ड से वश में लावे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यदि ते तु) अगर वे (प्रथमै त्रिभि उपायै) पहले तीन उपायों से (न तिष्ठेयुः) न रूके तो (दण्डेन एव) दण्ड से ही (प्रसव) बलात्कार (एतान) इनको (शनकै) धीरे धीरे (वशम आनयेत वश में करे)।
 
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