Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इस प्रकार विजय करने वाले सभापति के राज्य में जो परिपंथी अर्थात् डाकू - लुटेरे हों उनको साम - मिला लेना, दाम - कुछ देकर, भेद - तोड़ - फोड़ करके वश में करे ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इस प्रकार विजय करने वाले राजा के राज्य में जो डाकू-लुटेरे हों, उन्हें अपने से मिला लेना, कुछ धनादि पदार्थ देना, फोड़-तोड़ करना, और दण्ड देना, इन साम-दान-भेद-दण्ड नामी चारों उपायों से उन सब को अपने वश में लावे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(एवम विजयमानस्य अस्य ये परिपन्थिनः स्युः) इस प्रकार के विजयी राजा के जो विरोधी होवे (तान सर्वान) उन सबको (साम आदिभि उपक्रमै) साम दाम दण्ड भेद से (वशम आनयेत) वश मे लावे ।