Manu Smriti
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बकवच्चिन्तयेदर्थान्सिंहवच्च पराक्रमे ।वृकवच्चावलुम्पेत शशवच्च विनिष्पतेत् ।।7/106

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. जैसे बगुला ध्यानावस्थित होकर मच्छी के पकड़ने को ताकता है वैसे अर्थसंग्रह का विचार किया करे, द्रव्यादि पदार्थ और बल की वृद्धि कर शत्रु को जीतने के लिए सिंह के समान पराक्रम करे चीते के समान छिपकर शत्रुओं को पकड़े और समीप में आये बलवान् शत्रुओं से सुस्से (खरगोश) के समान दूर भाग जाये और पश्चात् उनको छल से पकड़े । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जैसे बगुला ध्यानावस्थित होकर मछली को पकड़ने के लिए ताकता रहता है, वैसे ध्यानावस्थित होकर शत्रु के अर्थ-संग्रह का विचार करे। द्रव्यादि पदार्थ और बलकी वृद्धि कर शत्रु को जीतने के लिए सिंह के समान पराक्रम करे। चिते के समान छिपकर शत्रुओं को पकड़े। और समीप में आए बलवान् शत्रुओं से खरगोश के समान दूर निकल भागे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
बकवत अर्थात चिन्तयेत) बगले के समान धन की चिन्ता करता रहे (सिंहवत च पराक्रमेत) सिंह के समान पराक्रम करे । (वृकवत च अवलुम्पेत) भेडिये के समान मारे (शशवत च विनिष्पतेत) खरगोश के सम्मान आपति से भागता रहे ।
 
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