Manu Smriti
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अमाययैव वर्तेत न कथं चन मायया ।बुध्येतारिप्रयुक्तां च मायां नित्यं सुसंवृतः ।।7/104

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. कदापि किसी के साथ छल से न वर्ते किन्तु निष्कपट होकर सबसे बर्ताव रखे और नित्यप्रति अपनी रक्षा करके शत्रु के किये हुए छल को जान के निवृत्त करे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु राजा सदा इस बात का ध्यान रखे कि वह सदा सब के साथ निष्कपटभाव से ही वर्ताव करे, कभी किसी के साथ छल से व्यवहार न करे। और, नित्यप्रति भली प्रकार अपनी रक्षा करके शत्रु के लिए हुए छल को जानता रहे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(अमायया एव वर्तेत) छल - शून्य रहे (न कथंचन मायया) छल का बर्ताव कभी न करे । (अरि प्रयुक्ताम मायम) शत्रुओं से किये हुए छल को (स्वंयवृतः) अपनी रक्षा करता हुआ (नित्यम बुध्येत) सदा जानता रहे ।
 
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