Manu Smriti
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नित्यं उद्यतदण्डस्य कृत्स्नं उद्विजते जगत् ।तस्मात्सर्वाणि भूतानि दण्डेनैव प्रसाधयेत् ।।7/103

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जिस राजा के राज्य में सर्वदा दण्ड के प्रयोग का निश्चय रहता है तो उससे सारा जगत् भयभीत रहता है इसीलिए सब प्राणियों को दण्ड से साधे अर्थात् दण्ड के भय से अनुशासन में रखे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(उघत दण्डस्य) जो सदा दण्ड को तैययार रखता है । ऐसे पुरूष से (कृत्स्नम जगत) सम्पूर्ण जगत (नित्यम) सदा (उत विजते) काॅपता रहता है । (तस्माम) इसलिये (सर्वाणि भूतानि) सब प्राणियो को (दण्डेन एव) दण्ड के द्वारा ही (प्रसाधयेत) ठीक रक्खे।
 
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