Manu Smriti
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नित्यं उद्यतदण्डः स्यान्नित्यं विवृतपौरुषः ।नित्यं संवृतसंवार्यो नित्यं छिद्रानुसार्यरेः ।।7/102

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
राजा सदैव दंड का प्रयोग करने में तत्पर रहे सदैव पराक्रम दिखलाने के लिए तैयार रहे सदैव गोपनीय कार्यों को गुप्त रखे सदैव शत्रु के छिद्रों - कमियों को खोजता रहे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(नित्यम उघत दण्ड स्यात) सदा दण्ड को तैययार रक्खे (नित्यम विषृत पौरूषः) को फैलावे । (नित्यम संवृतसंवाय्र्र) सदा गोपनीय चीजो जैसे कोष आदि को गुप्त रक्खे (नित्यम अरेः छिद्रानुसारी) सदा शत्रु के दोष को देखता रहे ।
 
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