Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
राजा के पुरुषार्थ का प्रयोजन भी चार प्रकार का है, उसको जाने और आलस्य त्याग उन चारों का सेवन करें जो उपरोक्त श्लोक में कथित है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यह चार प्रकार का राज्य के लिए पुरूषार्थ करने का उद्देश्य समझना चाहिए, राजा आलस्य रहित होकर इस उद्देश्य का सदैव पालन करता रहे ।
टिप्पणी :
‘‘इस चार प्रकार के पुरूषार्थ के प्रयोजन को जाने, आलस्य छोड़कर इसका भलीभांति नित्य अनुष्ठान करे ।’’
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राजा को चाहिये कि वह इन उपर्युक्तों को चार प्रकार के पुरुषार्थ के साधन जान, आलस्य छोड़ कर, नित्य इनका भलीभान्ति अनुष्ठान किया करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(एतत चतुविधम) यह चार प्रकार का (पुरूषार्थ प्रयोजनम विघात) पुरूषार्थ का प्रयोजन समक्षे (नित्यम) सदा (अत - न्द्रितः) आलस्य छोडकर (अस्य अनुष्ठाम) इसका पालन सम्यक कुर्यात भली भाॅति करे ।