Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो पुरुष वेद तथा शास्त्रों में वर्णित धर्म पर चलता है, वह संसार में यश प्राप्त करता है और अन्त (मृत्यु के उपरान्त) में सर्वदा आनन्द भोग करता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. हि क्यों कि मानवः जो मनुष्य श्रुति - स्मृति - उदितम् वेदोक्त धर्म और जो वेद से अविरूद्ध स्मृत्युक्त धर्मम् अनुतिष्ठन् धर्म का अनुष्ठान करता है, वह इह कीत्र्ति च प्रेत्य अनुत्तमं सुखम् इस लोक में कीत्र्ति और मरके सर्वोत्तम सुख को अवाप्नोति प्राप्त होता है ।
(स० प्र० दशम समु०)
श्रुति और स्मृति का परिचय -
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(श्रुति-स्मृति-उदितं धर्मम् अनुतिष्ठन् हि) श्रुति और स्मृति में कहे धर्म का अनुष्ठान करके ही (मानवः) मनुष्य (इह) इस संसार में (कीर्तिम् अब-आप्रोति) कीर्ति को पाता है। (प्रेत्य च) और मर कर (अन्-उत्तमं सुखम्) अपूर्व सुख को, ऐसे सुख को जिससे उत्तम कोई सुख है ही नहीं, अर्थात् मोक्ष को।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि जो मनुष्य वेदोक्त तथा स्मृत्युक्त (पूर्व प्रतिपादित आर्ष स्मृति, अनार्ष नहीं) कर्म-धर्म का अनुष्ठान करता है, वह इस लोक में कीर्ति और मर कर सर्वोत्तम सुख को प्राप्त होता है।