Manu Smriti
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अलब्धं चैव लिप्सेत लब्धं रक्षेत्प्रयत्नतः ।रक्षितं वर्धयेच्चैव वृद्धं पात्रेषु निक्षिपेत् ।।7/99

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अप्राप्त वस्तु को प्राप्त करने का प्रयत्न करें। प्राप्त वस्तु की रक्षा करें, रक्षित की उन्नति करें तथा उन्नत वस्तु को शुभ कार्यों में व्यय करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. राजा और राजसभा अलब्ध की प्राप्ति की इच्छा प्राप्त की प्रयत्न से रक्षा करे रक्षित को बढ़ावें और बढ़े हुए धन को वेद विद्या, धर्म का प्रचार, विद्यार्थी, वेदमार्गोपदेशक तथा असमर्थ अनाथों के पालन में लगावे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राजा का कर्तव्य है कि वह अलब्ध पदार्थ को पाने की इच्छा रखे, प्राप्त पदार्थ की प्रयत्न से रक्षा करे, रक्षित पदार्थ को बढ़ावे, और बढ़े हुये धन को सुपात्रों, अर्थात् वेदविद्या तथा धर्म के प्रचार के लिये विद्यार्थियों, वेदमार्गोंपदेशकों तथा असमर्थ अनाथों के पालन आदि में लगावे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(उपब्धं एव तिप्सेत) जो पाप्त नही है उसकी इच्छा करे (लब्धम प्रयव्रत निः क्षिपेत) बढे हुए सुपात्र को दान दे ।
 
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