Manu Smriti
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रथाश्वं हस्तिनं छत्रं धनं धान्यं पशून्स्त्रियः ।सर्वद्रव्याणि कुप्यं च यो यज्जयति तस्य तत् ।।7/96
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
रथ, घोड़ा, हाथी, छतरी, धन, धान्य, पशु, स्त्री तथा सारा द्रव्य सोना, चाँदी के अतिरिक्त सीसा, पीतल आदि इन सबको जो जीतता है वही उसका स्वामी है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इस व्यवस्था को कभी न तोड़े कि लड़ाई में जिस - जिस अमात्य वा अध्यक्ष ने रथ, घोड़े, हाथी, छत्र, धन, धान्य, गाय आदि पशु और स्त्रियां तथा अन्य प्रकार के सब द्रव्य और घी, तेज आदि के कुप्पे जीते हों वही उस - उस का ग्रहण करे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
लड़ाई में जिस-जिस योद्धा या अध्यक्ष ने जो जो रथ, घोड़े, हाथी, छत्र, धन, धान्य, गाय आदि पशु, स्त्रियां, और इसी प्रकार के अन्य सब द्रव्य तथा घी-तैल आदि के कुप्पे जीते हों, वह वह उसी के होते हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इतनी वस्तुये उसी की हो जाती है जो जीत ले:- रथ घोडा हाथी छाता रूप अन्न पशु स्त्री सब कुप्पी मे रक्खे जाने वाले धी तेल आदि पदार्थ
 
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