Manu Smriti
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यच्चास्य सुकृतं किं चिदमुत्रार्थं उपार्जितम् ।भर्ता तत्सर्वं आदत्ते परावृत्तहतस्य तु ।।7/95
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो क्षत्रिय युद्ध से परामुख होकर मारा जावे उसके पुण्य कर्मों का फल उसके स्वामी को प्राप्त होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. और जो उसकी प्रतिष्ठा है जिससे इस लोक और परलोक में सुख होने वाला था उसको उसका स्वामी ले लेता है जो भागा हुआ मारा जाये उसको कुछ भी सुख नहीं होता, उसका पुण्यफल नष्ट हो जाता और उस प्रतिष्ठा को वह प्राप्त हो जिसने धर्म से यथावत् युद्ध किया हो । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
और इसी प्रकार, इस पीठ दिखाकर पिटे हुए का जो कुछ आदर-प्रतिष्ठा-सुख आदि पुण्य परजन्म के लिए कमाया हुआ होता है, उस सब को सच्चा भर्ता छीन लेता है, और वह दण्ड का भागी बनता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इस भोगने वाले पुरूष के जीवन का जो कुछ कमाया हुआ पुण्य होता है स्वामी उन सबका भागी हो जाता है परलोक मे तात्पर्य यह है कि युद्ध मे भागना बहुत बडा पाप है।
 
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