Manu Smriti
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आवृत्तानां गुरुकुलाद्विप्राणां पूजको भवेत् ।नृपाणां अक्षयो ह्येष निधिर्ब्राह्मोऽभिधीयते ।।7/82

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो ब्राह्मण गुरुकुल के विद्याध्ययन समाप्त कर अपने पिता के गृह आवे राजा उनका पूजन करे, वे ब्राह्मण प्रक्षय कोष हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. सदा जो राजाओं को वेद - प्रचाररूप अक्षय कोश है इसके प्रचार के लिए कोई यथावत् ब्रह्मचर्य से वेदादि शास्त्रों को पढ़कर गुरूकुल से आवे, उसका सत्कार, राजा और सभा यथावत् करें तथा उनका भी जिनके पढ़ाये हुए विद्वान् होवें । इस बात के करने से राज्य में विद्या की उन्नति होकर अत्यन्त उन्नति होती है । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राजा गुरुकुल से लौटे हुए वेद प्रचारक विद्वान् स्नातकों का सत्कार करने वाला हो, क्योंकि वह वेदप्रचार-निधि राजाओं का अक्षय कोष माना गया है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(गुरूकुलात) गुरूकुल से आवृताना विव्राणाम लौटे हुए विद्वानो का (नृपाणाम) राजो का (एष ब्राह निधि) यह विघा सम्बन्धी कोष (अक्षय हि तो कभी) नाश नही होता । अर्थात राजा का सब से बडा घन यह है कि उसके राज में विद्वान अधिक हो
 
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