Manu Smriti
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अध्यक्षान्विविधान्कुर्यात्तत्र तत्र विपश्चितः ।तेऽस्य सर्वाण्यवेक्षेरन्नृणां कार्याणि कुर्वताम् ।।7/81

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
प्रत्येक स्थान पर विविध कार्यों का एक एक अध्यक्ष नियत करें वह अध्यक्ष राजा के कर्मचारियों के कार्य का निरीक्षण करे।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
‘‘उस राज्यकार्य में विविधप्रकार के अध्यक्षों को सभा नियत करे । इनका यही काम है - जितने - जितने, जिस - जिस काम में राजपुरूष होवें नियमानुसार वत्र्तकर यथावत् काम करते हैं वा नहीं । जो यथावत् करें तो उनका सत्कार और जो विरूद्ध करें तो उनको यथावत् दण्ड दिया करें ।’’ (स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
राजा अनेक योग्य विद्वान् अध्यक्षों को आवश्यकतानुसार विभिन्न कार्यों में नियुक्त करे वे सब अध्यक्ष इस राजा द्वारा नियुक्त सब कार्य करते लोगों का निरीक्षण करें ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राजा भिन्न-भिन्न राजकामों की देख-भाल के लिए भिन्न-भिन्न कार्यकुशल व्यक्तियों को अध्यक्ष नियत करे। और, वे अध्यक्ष काम करते हुए राजकर्मचारियों के सब कामों की देखभाल करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(तत्र तत्र) भिन्न-भिन्न स्थानो पर (विविधान् विपश्रिच्तः अध्यक्षान्) भिन्न-भिन्न चतुर अध्यक्ष (Governors) नियत करे। (तम्) वे (अस्य) इस राज्य के (सर्वाणि कार्याणि) सब कार्यो को (कुवर्ताम् नृणाम्) करने वाले मनुष्यों पर (अवेक्षेरन्) देख-भाल रक्खे।
 
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