Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सब बातों के ज्ञाता मनुजी ने जिसका जो धर्म इस शास्त्र में कहा है, वह सब वेद में है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
१।१२६/२।७ वां श्लोक निम्न - आधार पर प्रक्षिप्त है - ऋषियों की जिज्ञासा पर मनु ने मनुस्मृति का प्रवचन किया था, अतः मनुप्रोक्त प्रवचन ही था, ग्रन्थनिबद्ध नहीं । बाद में इसको ग्रन्थ रूप में निबद्ध किया गया और इसे ‘शास्त्र’ रूप में मान्यता प्राप्त हुई । किन्तु इस श्लोक में मनु की प्रशंसा की गई है कि जो कुछ मनु ने कहा है, वह सब वेद में कहा है । ऐसी प्रशंसा मनु सदृश आप्त पुरूष स्वयं नहीं कर सकता । अतः ‘मनुना परिकीत्र्तितः’ इस श्लोक के शब्दों से ही इस श्लोक का परवर्ती होना तथा प्रक्षिप्त होना सिद्ध होता है । और जिस समय अनेक स्मृतियों की रचना हो गई थी उस समय मनुस्मृति को अधिक प्रामाणिक सिद्ध करने के लिये किसी ने यह श्लोक बनाकर मिलाया है ।
और यह श्लोक पूर्वापर - प्रसंग से भी संगत नहीं है । १।१२५ श्लोक में धर्म के मूलकारण बताये गये हैं और १।१२७ में उन को ग्रहण करके धर्माचरण के लिए कहा गया है । इनके मध्य में मनु का प्रशंसात्मक यह श्लोक प्रकरण को भंग करने से सर्वथा ही प्रक्षिप्त है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यः कश्चित् कभ्याचित् धर्मः) जो कोई और जिस किसी का धर्म (मनुना परिकीर्तितः) मनु जी ने बताया है (स सर्वः अभिहितः वेदे) वह सब वेद में कहा है (सर्वज्ञानमयः हिं सः) वह मनु सब ज्ञान वाला है।