Manu Smriti
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यजेत राजा क्रतुभिर्विविधैराप्तदक्षिणैः ।धर्मार्थं चैव विप्रेभ्यो दद्याद्भोगान्धनानि च ।।7/79

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
विविध यज्ञों को भले प्रकार दक्षिणा देकर करें। धर्मार्थ ब्राह्मणों का भोग (अर्थात् गृह, शय्या, आभूषण, वस्त्रादि) व धन देवें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
राजा बहुत दक्षिणा वाले अनेक यज्ञों को किया करे तथा धर्म के लिए विद्वान् ब्राह्मणों को भोग्यवस्तुओं एवं धनों का दान करे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(राजा विविधै: आप्तदक्षिणैः क्रतुभिः यजेत) राजा को चाहिये कि ऋतु सम्बन्धी सभी यज्ञों को करें और उनमें दक्षिणा दे, (धर्मार्थम् च एव विप्रेभ्यः भोगान् धनानि च दद्यात्) धर्म के लिये ब्राहम्णों को भोग्य पदार्थ तथा धन दे।
 
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