Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
उस दुर्ग में अपना प्रासाद (मकान) ऐसा बनावें कि जिसमें पृथक पृथक स्त्री, देवता, शस्त्र तथा अग्नि के गृह हों, खाई भी हो, सब ऋतुओं के फल फूल उपस्थित हों, गृह श्वेत रंग का हो, तथा उसमें बावली, कूप, व वृक्ष हो।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
उसके मध्य में जल, वृक्ष - पुष्पादिक युक्त सब प्रकार से रक्षित सब ऋतुओं में सुखकारक श्वेतवर्ण अपने लिए घर जिसमें सब राज कार्य का निर्वाह हो वैसा बनवावे ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
उस दुर्ग के मध्य में राजा सब प्रकार के राज्य-कार्यों के निर्वाह के योग्य अपना राजभवन बनवावे, जोकि इस प्रकार से सुरक्षित, सब ऋतुओं में सुखकारक, स्वच्छ-श्वेतवर्ण, और जल-वृक्ष से संयुक्त होवे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(तस्य मध्ये) उस किले के बीच में (आत्मनः सुपर्याप्तम् गृहम् कारयेत्) अपना अच्छी भाँति सुसज्जित घर बनावे वह (गुप्तम्) सुरक्षित हो (सर्वर्तुकम्) सब ऋतुओं के योग्य हो, (शुभम्) सुन्दर हो (जलवृक्षसमन्वितम्) जल और वृक्षों से युक्त हो।