Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
टिप्पणी :
दुर्गवासी एक धनुर्धारी प्रकार (कोट की दीवार) के बाहर के सौ योद्धाओं से लड़ सकता है तथा दुर्गवासी सौ मनुष्य बाहर के दश सहस्र मनुष्यों से युद्ध कर सकते हैं। अतएव दुर्ग बनाने का उपदेश करते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
नगर के चारों ओर प्राकार - प्रकोट बनावे क्यों कि उस में स्थित हुआ एक वीर धनुर्धारी शस्त्रयुक्त पुरूष सौ के साथ, और सौ दशहजार के साथ युद्ध कर सकते हैं इसलिए अवश्य दुर्ग का बनाना उचित है ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्योंकि, प्राकार-दुर्ग में स्थित एक धनुर्धारी शत्रुओं के सौ, और सौ धनुर्धारी शत्रुओं के दस हजार, अर्थात् अपने से सौगुना योद्धाओं के साथ युद्ध कर सकता है, अतः दुर्ग का विधान किया गया है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(प्राकारस्थः एकः धनुर्धः शतं ग्रोधयति) प्रकार अर्थात् खाई या किले भीतर एक सिपाही सौ सिपाहियों से लड़ सकता है। (शतम् दश सहस्त्राणि) सौ दस हजार से। (तस्मात् दुर्गम् विधीयते) इसलिये किले बनाने का विधान है।