Manu Smriti
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स विद्यादस्य कृत्येषु निर्गूढेङ्गितचेष्टितैः ।आकारं इङ्गितं चेष्टां भृत्येषु च चिकीर्षितम् ।।7/67

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सब अधिकारियों में दूत ही राजा की बात, आकार, चेष्ठा, तथा राजा के करने योग्य सब कार्य को जाने, अन्य सेवकों को पूर्ण भेद ज्ञात न होना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
वह दूत शत्रु राजा के असंतुष्ट या विरोधी लोगों में और राजकर्मचारियों में गुप्त संकेतों एवं चेष्टाओं से उनके आकार - भाव संकेत - हाव चेष्टा को तथा उनके अभिलाषित कार्य को जाने ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
वह दूत कार्यों में नियुक्त नौकरों के इशारों और चेष्टाओं से शत्रुराजा के भाव-हाव-चेष्टित को जाने। और, साथ ही यह भी ताड़ ले कि उन नौकरों के प्रति उस शत्रुराजा का कैसा भाव है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(स अस्य निगूढे़डिग्तचेष्टितैः कृत्येषु विद्यात्) दूत को चाहिये कि वह गुप्त इशारों या चेष्टा से कृत्यों की खोज मे रहे:- कृत्य उन लोगों को कहते है, जो धन स्त्री, सम्पत्ति आदि के लोभ से फोडे जा सकते है। दूत दूसरों के राज्य में रहते हुए ऐसे लोगों का पता रखते है। जिससे आवश्यकता पडनें पर उनको मिलाया जा सके। (आकाराम् इंगितम् चेष्टाम् भृत्येषु च चिकीर्षितम्) दूत का यह भी कर्तव्य है कि राज्यकर्मचारियों के विचार तथा इच्छाओं पर भी दृष्टि रक्खे। अर्थात् कौन क्सा चाहता है।
 
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