Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
दूत एव हि संधत्ते भिनत्त्येव च संहतान् ।दूतस्तत्कुरुते कर्म भिद्यन्ते येन मानवः ।।7/66

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
दूत ही बिगड़े हुए (शत्रु) को मिलता है अथवा दूत ही मिले हुए (मित्र) को बिगाड़ता है। जिसके द्वारा सन्धि (मिलाप) तथा विग्रह (बिगाड़) होता है वह दूत ही करता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
‘‘दूत उसको कहते हैं जो फूट में मेल और मिले हुए दुष्टों को फोड़ - तोड़ देवे, दूत वह कर्म करे जिससे शत्रुओं में फूट पड़े ।’’ (स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
क्यों कि दूत ही ऐसा व्यक्ति होता है जो मेल करा देता है और मिले हुए शत्रुओं में फूट भी डाल देता है, दूत वह काम कर देता है जिससे शत्रुओं के लोगों में भी फूट पड़ जाती है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
दूत ही फूटे हुओं को मिलाता और मिले हुए शत्रुओं को फोड़ता है। एवं, दूत वह कर्म करता है, जिससे शत्रुपक्ष के मनुष्य फूट जाते हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
छूत ही सन्धि कराता है। दूत ही मिले हुओ को तोड़-फोड़ देता है। दूत ही ऐसा काम करता है जिससे मनुष्यों मे भेद हो जाता है।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS