Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इन मन्त्रियों से निम्नलिखित विषयों पर नित्य मन्त्रणा (परामर्श) करें अर्थात् सिन्ध, विग्रह, धन, नगर, राज्य, रथखाना आदि सेनापालन, अन्न सोना रूपादि की उत्पत्ति स्थान, अपनी तथा राज्य की रक्षा और प्राप्त धन को उत्तम लोगों को दान देना।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इससे सभापति को उचित है कि नित्यप्रति उन राज्यकर्मों में कुशल विद्वान् मन्त्रियों के साथ सामान्य करके किसी से सन्धि - मित्रता, किसी से विग्रह - विरोध, स्थित समय को देखकर के चुपचाप रहना, अपने राज्य की रक्षा करके बैठे रहना जब अपना उदय अर्थात् वृद्धि हो तब दुष्ट शत्रु पर चढ़ाई करना मूल राज, सेना, कोश आदि की रक्षा जो - जो देश प्राप्त हों उस- उस में शान्ति - स्थापना, उपद्रवरहित करना इन छः गुणों का विचार नित्यप्रति किया करे ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
‘‘महाराजा को उचित है कि मन्त्रियों समेत छः बातों पर विचार करें - १. मित्र, और २. शत्रु में चतुरता, ३. अपनी उन्नति, ४. अपना स्थान, ५. शत्रु के आक्रमण से देश की रक्षा, ६. विजय किये हुए देशों की रक्षा, स्वास्थ्य आदि प्रत्येक विषय पर विचार करके यथार्थ निर्णय से जो कुछ अपनी और दूसरों की भलाई की बात विदित हो उसे करना ।’’
(पू० प्र० १११)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
अतः, राजा को चाहिए कि वह उन राज्यकर्मों में कुशल मंत्रियों के साथ सामान्य सन्धि-विग्रह कि जिसे सर्वथैव गुप्त रखना आवश्यक नहीं, स्थिति अर्थात् समय को देखकर चुपचाप रहना, जब अपना उदय अर्थात् बृद्धि हो तब दुष्ट शत्रु पर चढ़ाई करना, मूल राजसेना व कोश आदि की रक्षा करना, तथा जो-जो देश प्राप्त हों उस-उस से उपद्रवरहि शान्ति-स्थापन करना, इन ६ विषयों में नित्यप्रति विचार किया करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इन मंत्रियों के साथ नित्य इन बातों का विचार करें:- (सामान्यम् सन्धि-विग्रहम्) किससे सन्धि करना चाहिये और किससे युद्ध। (स्थान) दण्ड, कोश, पुर, राष्ट्र यह चार स्थान कहलाते है। दण्ड- Criminal Department, क्रोश Finance, पुर ... Public Works Department, Political Department.
(समुदयम्) सर्वतोमुखी उन्नति - General progress (गुप्तिम्) रक्षा- Police or army, (ल्बध प्रशमनानि) प्राप्त राज्य के लोगों को सन्तुष्ट रखना - Pacification of Subjects