Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
व्यसन तथा मृत्यु में व्यसन निकृष्ट है, क्योंकि व्यसनी नरक में जाता है और जिसने व्यसन परित्याग कर दिये हैं, वह मृत्यु पश्चात् सुख पाता है, अतएव व्यसन से मृत्यु उत्तम है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
‘‘इसमें यह निश्चय है कि दुष्ट व्यसन में फंसने से मर जाना अच्छा है क्यों कि जो दुष्टाचारी पुरूष हैं वह अधिक जियेगा तो अधिक - अधिक पाप करके नीच - नीच गति अर्थात् अधिक - अधिक दुःख को प्राप्त होता जायेगा और जो किसी व्यसन में नहीं फंसा वह मर भी जायेगा तो भी सुख को प्राप्त होता जायेगा । इसलिये विशेष राजा को और सब मनुष्यों को उचित है कि कभी मृगया और मद्यपान आदि दुष्टकामों में न फंसे और दुष्ट व्यसनों से पृथक् होकर धर्मयुक्त, गुण - कर्म - स्वभावों में सदा वर्तके अच्छे - अच्छे काम किया करे ।’’
(स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
व्यसन और मृत्यु में व्यसन को ही अधिक कष्टदायक कहा गया है, क्यों कि व्यसन में फंसा रहने वाला व्यक्ति दिन प्रतिदिन दुर्गुणों और कष्टों में गिरता ही जाता है या अवनति को ही प्राप्त होता जाता है, किन्तु व्यसन से रहित व्यक्ति मरकर भी स्वर्गसुख को प्राप्त करता है अर्थात् उसे परजन्म में सुख मिलता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
दुर्व्यसन और मृत्यु में दुर्व्यसन अस्यधिक बुरा है। क्योंकि दुर्व्यसनी पुरुष तो अधिक जीने पर अधिकाधिक पाप करके नीच ही नीच गति अर्थात् अधिकाधिक दुःख को पाता जायेगा; परन्तु किसी भी व्यसन में न फंसा हुआ श्रेष्ठ मनुष्य यदि मर भी गया तो वह परजन्म में भी सुख ही पावेगा। इसलिए राजा को चाहिए कि व्यसनों से सदा बचता रहे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(व्यसनन्य मृत्योः च व्यसनम् कष्टम् उच्यते) व्यसन और मृत्यु इन दोनो में व्यसन अधिक बुरा है। (व्यसनी अधः अधः व्रजति) व्यसनी धीरे-धीरे नीचे गिरता जाता है। (अव्यानी मृतः स्वः याति) जो वयसनी नहीं है वह मरकर स्वर्ग को जाता है।