Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
क्रोध द्वारा उत्पन्न आठ व्यसन यह हैं-1-बिना जाने दोष को कहना, 2-जिन बल द्वारा काम करना, 3-छल, से किसी को मार डालना, 4-ईष्र्या, 5-किसी के गुण में दोष लगाना, 6-कटु भाषण, 7-अर्थ को चुराना अथवा देने योग्य पदार्थ को न देना, 8-दण्ड से ताड़त करना।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. क्रोध से उत्पन्न व्यसनों को गिनाते हैं - पैशुन्य अर्थात् चुगली करना बिना विचारे बलात्कार से किसी स्त्री से बुरा काम करना द्रोह रखना ईष्र्या अर्थात् दूसरे की बढ़ाई वा उन्नति देखकर जला करना असूर्या - दोषों में गुण, गुणों में दोषारोपण करना अर्थदूषण अर्थात् अधर्मयुक्त बुरे कामों में धन आदि का व्यय करना कठोर वचन बोलना और बिना अपराध का कड़ा वचन वा विशेष दंड देना ये आठ दुर्गुण क्रोध से उत्पन्न होते हैं ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
और, चुगली करना, बिना विचारे एकदम काम कर बैठना, वृथा वैर बांधना, दूसरे की बड़ाई व उन्नति देखकर जला करना, दूसरे के गुणों में दोषारोपण करना, बुरे कामों में धन का लगाना, कठोर वचन बोलना, तथा बिना अपराध दण्ड देना, ये आठ क्रोध-जन्य दुर्व्यसन हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
क्रोध से उत्पन्न होने वाले आठ दोष यह हैः-
(1) पैशुन्य- चुगली करना (2) साहस-अच्छे पुरूषों का अपमान करने का साहस (3) द्रोह (4) ईष्र्या (5) असूया--डाह (6) अर्थदूषण-धन मार लेना (7) वाकपारूष्य-गाली (8) दण्डजम् पारूष्यम्-मारना पीटना।