Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
काम द्वारा उत्पन्न दस व्यसन यह हैं - 1-मृगया (शिकार खेलना), 2-पाँसा खेलना, 3-दिन में सोना, 4-परिवाद (दूसरे का दोष प्रकट करना, 5-स्त्री की सेवा करना, 6-मद्य पीकर मस्त हो जाना, 7-नाचना, 8-गाना, 9-बजाना, 10-व्यर्थ घूमना।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
काम से उत्पन्न हुए व्यसन गिनाते हैं................ मृगया (शिकार) खेलना अक्ष अर्थात् चोपड़ खेलना, जूआ खेलना आदि दिन में सोना काम कथा वा दूसरे की निंदा किया करना स्त्रियों का अति संग मादक द्रव्य अर्थात् मद्य, अफीम, भांग, गांजा, चरस आदि का सेवन गाना, बजाना, नाचना व नाच कराना सुनना और देखना (ये तीन बातें) इधर - उधर घूमते रहना ये दश कामोत्मन्न व्यसन हैं ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
उन अठारह प्रकार के दुव्यर्सनों में, शिकार करना, चौपड़ आदि जूआ खेलना, दिन में सोना, दूसरे की निन्दा करना, स्त्रियों का अति संग, मद्य-अफीम-भांग-गांजा-चरस आदि मादक द्रव्यों का सेवन, गाना-बजाना-नाचना व उनकी सुनना-देखना, और वृथा अवारागिर्द इधर उधर घूमते रहना, ये दश कामोत्पन्न दुर्व्यसन हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
काम से उत्पन्न हुए दस व्यसन यह हैः-
(1) मृगया-शिकार (2) अक्ष-जुआ (3) दिवास्वप्र-दिन में सोना (4) परिवाद-दूसरों के दोष निकालना (5) स्त्रियः-स्त्रियों के साथ रहना (6) मद-नशा (7, 8, 9) तौर्यत्रिक अर्थात् नाचना, गाना, बजाना (10) वृथाढया- व्यर्थ घूमना।
क्मी पुरूष काम के वश होकर इन व्यसनों में फँस जाते है। कामी पुरूष का मन किसी काम में नहीं लगता। इसलिये मन बहलाने के लिये इधर उधर फिरता है।