Manu Smriti
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इन्द्रियाणां जये योगं समातिष्ठेद्दिवानिशम् ।जितेन्द्रियो हि शक्नोति वशे स्थापयितुं प्रजाः ।।7/44

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
रात्रि दिवस इन्द्रियों को वश में करने का प्रयत्न करें, जो राजा जितेन्द्रिय है वह सारी प्रजा को अपनी अधीनता में रख सकता है तथा जो इन्द्रियजित् नहीं है अर्थात् विषयी है वह अवश्य नष्ट होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जब सभासद् और सभापति इन्द्रियों को जीतने अर्थात् अपने वश में रख के सदा धर्म में वर्ते और अधर्म से हटे - हटाए रहें, इसलिए रात - दिन नियत समय में योगाभ्यास भी करते रहें क्यों कि जो जितेन्द्रिय कि अपनी इन्द्रियों - जो मन, प्राण और शरीर प्रजा है इसको जीते बिना बाहर की प्रजा को अपने वश में स्थापन करने को समर्थ कभी नहीं हो सकता । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राजा को चाहिए कि वह इन्द्रियों को जीतने के लिए प्रातः काल और सायंकाल नियमपूर्वक योगाभ्यास करे। क्योंकि जितेन्द्रिय राजा ही, कि जिसने मन-इन्द्रिय-प्राण-शरीररूपी आत्म-प्रजा को जीत लिया है, ब्राह्य-प्रजा को अपने वश में स्थापित कर सकता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(दिवानिशम्) रात दिन (दन्द्रियाणां जये योगं समातिष्ठेत्) अपनी इन्द्रियों को वश में रखने का उपाय करता रहें। (जितेन्द्रियः हि प्रजा वशे स्थापयितुं शक्नोति) जितेन्द्रिय ही प्रजा को वशं में रख सकता है।
 
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