Manu Smriti
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त्रैविद्येभ्यस्त्रयीं विद्यां दण्डनीतिं च शाश्वतीम् ।आन्वीक्षिकीं चात्मविद्यां वार्तारम्भांश्च लोकतः ।।7/43

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
तीन वेदों के ज्ञाताओं से तीनों वेद, दण्डनीति ज्ञाताओं से नीतिशास्त्र, ब्रह्मविद्या, ज्ञाताओं से ब्रह्म विद्या को पढ़ें तथा धन-प्राप्ति के उपाय ज्ञाताओं से कृषि, व्यापार और पशुपालन व चिकित्सा आदि को सीखें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
राजा और राजसभा के सभासद् तब हो सकते हैं कि जब वे चारों वेदों की कर्म, उपासना, ज्ञान विद्याओं के जानने वालों से तीनों विद्या सनातन दण्डनीति न्यायविद्या आत्मविद्या अर्थात् परमात्मा के गुण - कर्म - स्वभावरूप को यथावत् जानने रूप ब्रह्मविद्या और लोक से वात्र्ताओं का आरम्भ (कहना और सुनना) सीखकर - सभासद् या सभापति हो सकें । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
राजा उन त्रिविद्या-विज्ञ ब्राह्मणों से तीनों विद्यायें, सनातन दण्डनीति, न्यायशास्त्र और ब्रह्मविद्या; तथा व्यवहार-कुशल लोगों से व्यवहारों को सीखे।
 
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