Manu Smriti
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संकल्पमूलः कामो वै यज्ञाः संकल्पसंभवाः ।व्रतानि यमधर्माश्च सर्वे संकल्पजाः स्मृताः । 2/3

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इच्छा, यज्ञ, व्रत, नियम, धर्म यह सब संकल्प अर्थात् ’इस काम से यह फल हमको मिले‘-ऐसी बुद्धि से उत्पन्न होते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. जो कोई कहे कि मैं निष्काम हूँ वा हो जाऊं तो वह कभी नहीं हो सकता, क्यों कि - सर्वे सब काम यज्ञाः व्रतानि यमधर्माः यज्ञ, सत्यभाषणादि व्रत, यम-नियमरूपी धर्म आदि संकल्पजाः संकल्प ही से बनते हैं कामः वै निश्चय से प्रत्येक कामना संकल्पमूलः संकल्पमूलक होती है अर्थात् संकल्प से ही प्रत्येक इच्छा उत्पन्न होती है । (स० प्र० दशम समु०)
टिप्पणी :
वूलरादि पाश्चात्य - विद्वानों तथा टीकाकारों का अन्यथा व्याख्यान १. वूलरादि पाश्चात्य विद्वानों ने १।१२१ से १२४ तक (२।२ से २।५ तक) चार श्लोकों को प्रक्षिप्त माना है । इस विषय में उनकी युक्ति यह है कि यहां सकामता और निष्कामता का कोई प्रसंग नहीं है । परन्तु उनका यह कथन अविवेकपूर्ण तथा असंगत है । क्यों कि मनु ने धर्म के विषय में वेद को सर्वाधिक प्रमाण माना है और मनु ने उसी का संकेत १।१२० श्लोक में यह कहकर दिया है कि विद्वानों ने जिस वेदोक्त धर्म को हृदय से स्वीकार किया है, उसे जानो । किन्तु वेदोक्त - धर्म को जानने की (१।१२१ में) कामना अवश्यक करनी पड़ेगी, बिना कामना के अथवा संकल्प के (१।१२२ में) यज्ञ, व्रत, यम, नियम आदि सार्वभौम शाश्वत धर्मों की सिद्धि - कदापि नहीं हो सकती । मनुष्य जो भी धर्माचरणादि कोई कर्म करता है, वह (१।१२३) बिना कामना के नहीं होती । उन काम्य व्रत, यम, नियमादि धर्मों में वत्र्तमान रहता हुआ (१।१२४) मनुष्य अमरलोक - मोक्ष का अधिकारी बन जाता है । वेदोक्त धर्म की ही कामना क्यों की जाये ? इसका उत्तर १।१२५ श्लोक में ‘वेदोऽखिलो धर्ममूलम्’ कहकर दिया गया है । अतः यह समस्त प्रकरण परस्पर शृंखला से सुसम्बद्ध तथा संगत है ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(संकल्प मूलः कामः वै) इच्छा ही संकल्प की जड़ है। जब इच्छा होगी तो मनुष्य संकल्प करेगा। (यज्ञाः संकल्प-संभवाः) संकल्प से यज्ञ उत्पन्न होते हैं। (व्रतानि यमधर्माः च सर्वे संकल्पजाः स्मृताः) व्रत, नियम तथा धर्म सब संकल्प से ही उत्पन्न होते हैं।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो कोई कहे कि मैं निच्छि और निष्काम हूं व हो जाऊं तो वह कभी नहीं हो सकता; क्योंकि निस्सन्देह कामना संकल्प मूलक है और सब काम, जैसे यज्ञ, संकल्प से होते हैं तथा सत्यभाषणादि व्रत और यम नियमादि धर्म संकल्पजन्य माने गये हैं।
 
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Comment By: Shubhi Arya
Bhut he achaa lga.
 
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