Manu Smriti
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सोऽसहायेन मूढेन लुब्धेनाकृतबुद्धिना ।न शक्यो न्यायतो नेतुं सक्तेन विषयेषु च ।।7/30

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो राजा शरणागत को शरण नहीं देता, व मूढ़ (मूर्ख) लोभी तथा सांसारिक विषय भोगों में लिप्त है, वह न्याय शास्त्रानुसार दण्ड देने की सामथ्र्य नहीं रखता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो राजा उत्तम सहायरहित, मूढ़ लोभी जिसने ब्रह्मचर्यादि उत्तम कर्मों से विद्या और बुद्धि की उन्नति नहीं की जो विषयों में फंसा हुआ है उससे वह दण्ड कभी न्यायपूर्वक नहीं चल सकता । (स० वि० गृहाश्रम प्र०)
टिप्पणी :
‘‘क्यों कि जो आप्तपुरूषों के सहाय, विद्या सुशिक्षा से रहित, विषयों में आसक्त मूढ़ है, वह न्याय से दण्ड को चलाने में समर्थ कभी नहीं हो सकता ।’’ (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
वह दण्ड उत्तम सहायों रहित, विद्या-सुशिक्षा से रहित, लोभी, ब्रह्मचर्यादि साधनों से विद्या-बुद्धि की उन्नति न किये हुए, तथा विषयों में फंसे हुए राजा से कभी न्यायपूर्वक नहीं चलाया जा सकता।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इस दण्ड को ऐसा राजा पालन नहीं कर सकताः- (1) असहाय- जो अच्छे मंत्रियों तथा राजसभा से परामर्श नही लेता। (2) मृढ़-मोही। (3) लुब्ध-लाभी। (4) अकृत-बुद्धि-शून्य। (5) विषय-सत्क-विषयी, लम्पट। (29)
 
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