Manu Smriti
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दण्डो हि सुमहत्तेजो दुर्धरश्चाकृतात्मभिः ।धर्माद्विचलितं हन्ति नृपं एव सबान्धवम् ।।7/28

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
दण्ड बहुत ही तेजवान् है। जो राजा शास्त्रज्ञाता नहीं है। वह दण्ड ही को धारण नहीं कर सकता। वही दण्ड अधर्मी राजा को उसके सम्बन्धी तथा बान्धवों सहित नष्ट कर देता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. दण्ड बड़ा तेजोमय है उसको अविद्वान् अधर्मात्मा धारण नहीं कर सकता तब वह दण्ड धर्म से रहित राजा ही का नाश कर देता है ।
टिप्पणी :
कुलसहित............................................... (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
यह दण्ड बड़ा तेजोमय है। उसे अविद्वान्-अधर्मात्मा लोग नहीं धारण कर सकते। यह दण्ड धर्मभ्रष्ट राजा को साथियों सहित नष्ट कर देता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(दण्उ:हि सुमहत् तेजः) दण्ड बडे़ तेजवाला है (अकृतआत्मभिः दुर्धरः च) इस दण्ड को वह लोग धारण नहीं कर सकते, जिनमें आत्माशक्ति नहीं है। अर्थात आत्मशक्ति वाला ही राज-नियम का पालन कर सकता है। (धर्मात् विचलितं नृप सबान्धवम् एव हन्ति) जो राजा धर्म से विचलित है, उसका सम्बन्धियों सहित नाश हो जाता है।
 
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