Manu Smriti
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तं राजा प्रणयन्सम्यक्त्रिवर्गेणाभिवर्धते ।कामात्मा विषमः क्षुद्रो दण्डेनैव निहन्यते ।।7/27

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इस दण्ड को देने से राजा धर्म काम अर्थ से बढ़ता है, जितने मनुष्य कामी, क्रोधी, छली तथा नीच हैं वह सब दण्ड द्वारा ही मारे जाते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो दण्ड को अच्छे प्रकार राजा चलाता है वह धर्म, अर्थ और काम की सिद्धि को बढ़ाता है, और जो विषय में लंपट टेढ़ा, ईष्र्या करने हारा क्षुद्र नीचबुद्धि न्यायाधीश राजा होता है वह दण्ड से ही मारा जाता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो राजा उस दण्ड को सम्यक्तया चलाता है, वह धर्म-अर्थ-काम, इन तीनों की सिद्धि से बृद्धि को प्राप्त करता है। और जो विषय-लम्पट, टेढ़ा व ईर्ष्या करने वाला क्षुद्र नीचबुद्धि होता है, वही उसी दण्ड से मारा जाता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(तं सम्यक् प्रणयन्) दण्ड का ठीक-ठीक विधान करने वाला (राजा) राजा (त्रिवर्गेण अभिवर्धते) धर्म, अर्थ और कामरूपी संवृद्धि को पाता है (कामात्मा) कामी (विषमः) पक्षपाती (क्षुद्रः) संकुचित विचार वाला राजा (दण्डेन एव निहन्यते) दण्ड से स्वयं ही नष्ट हो जाता है।
 
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