Manu Smriti
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तस्याहुः संप्रणेतारं राजानं सत्यवादिनम् ।समीक्ष्यकारिणं प्राज्ञं धर्मकामार्थकोविदम् ।।7/26

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो राजा सत्यवादी, दूरदर्शी, धर्मकर्मज्ञाता, चतुर, तथा कार्य-तत्पर है उसी में दण्ड देने की सामथ्र्य है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
उस दण्ड को अच्छे प्रकार चलाने हारे उस राजा को कहते हैं कि जो सत्यवादी, विचार ही करके कार्य का कत्र्ता बुद्धिमान् विद्वान् धर्म, काम और अर्थ का यथावत् जानने हारा हो । (स० वि० गृहाश्रम प्र०)
टिप्पणी :
‘‘जो उस दण्ड का चलाने वाला सत्यवादी, विचार के करने हारा, बुद्धिमान्, धर्म, अर्थ और काम की सिद्धि करने में पण्डित राजा हैं, उसी को उस दण्ड का चलाने हारा विद्वान् लोग कहते हैं ।’’ (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
उस दण्ड का चलाने वाला वह राजा बतलाया गया है जोकि सत्यवादी, भली प्रकार सोच विचार कर काम करने वाला, बुद्धिमान् तथा धर्म-अर्थ-काम की सिद्धि में पण्डित हो।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(राजनम्) जो राजा (सत्यवादिनम्) सत्यवादी है, (समीक्ष्य कारिणम्) देख-भाल के काम करने वाला है, (प्राज्ञम्) बुद्धिमान् है,(धर्म+काम+अर्थ+कोविदम्) धर्म, अर्थ, काम का ज्ञान रखता है, उसी को (तस्य संप्रणोतारम्) दण्ड देने का अधिकारी (आहुः) कहा है।
 
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