Manu Smriti
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यत्र श्यामो लोहिताक्षो दण्डश्चरति पापहा ।प्रजास्तत्र न मुह्यन्ति नेता चेत्साधु पश्यति ।।7/25

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जहाँ श्याम व अरुण (लाल काला) नेत्र-पाप-नाशक दण्ड चक्कर लगाता है वहाँ प्रजा को मोह नहीं होता किन्तु यह उसी दशा में होता है जब दण्ड दाता (दण्ड देने वाला) भली भाँति विचार पूर्वक दण्ड देवे।
टिप्पणी :
25वें श्लोक में जिस दण्ड का वर्णन है यह अति भयानक है जिनका तात्पर्य पुलिस से है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जहां कृष्णवर्ण, रक्तनेत्र भयंकर पुरूष के समान पापों का नाश करने हारा दण्ड विचरता है वहां प्रजा मोह को प्राप्त न होके आनन्दित होती है परन्तु जो दण्ड का चलाने वाला पक्षपातरहित विद्वान् हो तो । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु जहां कृष्णवर्ण तथा रक्तनेत्र भयंकर पुरुष के समान पापों का नाश करने वाला दण्ड विचरता है, यदि उस दण्ड का चलाने वाला न्याय-द्ष्टि से देखता हो, तो वहां प्रजा कभी व्याकुल न होती हुई आनन्दित रहती है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यत्र) जहाँ (श्यामः लोहिताक्षः पापहा दण्डः चरति) काला काला लाल आँखों वाला और पाप को नष्ट करने वाला दण्ड-विधान है (नेता चेत् साधु पश्यति) और राजा ठीक-ठीक देखने वाला है, (तत्र) वहाँ (प्रजाः न मुह्मन्ति) प्रजा को मोह नहीं सताता।
 
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