Manu Smriti
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दुष्येयुः सर्ववर्णाश्च भिद्येरन्सर्वसेतवः ।सर्वलोकप्रकोपश्च भवेद्दण्डस्य विभ्रमात् ।।7/24

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
दण्डनीय पुरुषों को दण्ड न देने से, व अदण्डनीय पुरुषों को दण्ड देने से सब वर्ण दुष्ट हो जावेंगे तथा मर्यादा टूट जावेगी। सारा संसार क्रोधित हो जावेगा।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
बिना दण्ड के सब वर्ण दूषित और सब मर्यादाएं छिन्न - भिन्न हो जायें दण्ड के यथावत् न होने से सब लोगों का प्रकोप हो जावे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
दण्ड का उचित उपयोग न करने से सब वर्ण दूषित हो जावें, सभी धर्ममर्यादायें छिन्न-भिन्न हो जावें, और सब लोगों में विद्रोह फैल जावे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
दण्डस्य विभ्रमात्) दण्ड में गड़बड़ होने से (दुष्येयुः सर्व वर्णाः) सब वर्ण दृषित हो जाते है, (भिद्येरन् सर्व सेतवः) सब पुल टूट जाते हैं अर्थात् सब मर्यादायें नश्ट हो जाती हैं, (सर्वलोक प्रकोपः च भवेत्) और सब लोकों में क्षोभ हो जाता है।
 
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