Manu Smriti
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दण्डः शास्ति प्रजाः सर्वा दण्ड एवाभिरक्षति ।दण्डः सुप्तेषु जागर्ति दण्डं धर्मं विदुर्बुधाः ।।7/18

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सबका रक्षक, आज्ञा देने वाला तथा सोते हुए को चैतन्य करने वाला वही दण्ड है। उसी दण्ड को पंडित लोग धर्म कहते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
वही दण्ड प्रजा का शासनकत्र्ता सब प्रजा का रक्षक है सोते हुए प्रजास्थ जनों में जागता है, इसीलिए बुद्धिमान् लोग दण्ड को ही धर्म कहते हैं । (स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
वह दण्ड ही...................... ‘‘और जैसा विद्वान् लोग दण्ड ही को धर्म जानते हैं, वैसा सब लोग जानें । क्यों कि दण्ड ही प्रजा का शासन अर्थात् नियम में रखने वाला, दण्ड ही सब का सब ओर से रक्षक, और दण्ड ही सोते हुओं में जागता है । चोरादि दुष्ट भी दंड ही के भय से पाप कर्म नहीं कर सकते ।’’ (स० वि० गृहाश्रम प्रक०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
वह दण्ड समस्त प्रजा का शासन करता है, वह दण्ड ही सब प्रजा की रक्षा करता है, वह दण्ड ही सोते हुए प्रजास्थ मनुष्यों में जागता रहता है जिससे चोर आदि दुष्ट मनुष्य डरत रहते हैं। इसलिए बुद्धिमान् लोग उस दण्ड को धर्म कहते हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
दण्ड ही सब प्रजाओं पर राज करता है। दण्ड ही उनकी रक्षा करता है। जब सब सोते है। तब दण्ड जागता है। बुद्धिमान् इसीलिये दण्ड को धर्म कहते है।
 
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