Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
संसार में दण्ड ही राजा है तथा दण्ड ही के कारण राजा पुरुष है और शेष सब लोग स्त्री हैं, दण्ड, कार्यों का फल देने वाला चारों आश्रमों के धर्म का आज्ञादाता और उत्तदाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो दण्ड है वही पुरूष, राजा वही न्याय को प्रचारकत्र्ता और सब का शासनकत्र्ता वही चार वर्ष और चार आश्रमों के धर्म का प्रतिभू अर्थात् जामिन् (जिम्मेदार) है ।
(स० प्र० ६ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
वही दण्ड पुरुष-राजा है, वही दण्ड न्याय का प्रचारकर्ता है, वही दण्ड सब का शासक है, और वही दण्ड चारों आश्रमों के धर्म की ज़ामिन माना गया है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(स दण्डः राजा पुरूषः) वस्तुतः वह दण्ड ही राजा है,(स नेता) वही नेता है (सः च शासिता) वही हाकिम है। (चतुर्णाम् आश्रमाणां च धर्मस्य स प्रतिभूः स्मृतः) यही दण्ड चारों आश्रमों के धर्म का प्रतिभू आर्थात् उत्तरदाता (जामिन या जिम्मेवार) है।