Manu Smriti
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तं देशकालौ शक्तिं च विद्यां चावेक्ष्य तत्त्वतः ।यथार्हतः संप्रणयेन्नरेष्वन्यायवर्तिषु ।।7/16

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
देश, काल, शक्ति, विद्या को देखकर अपराधियों को उनके वित्तानुसार तथा बालानुसार यथाक्रमयोग्य दण्ड देवें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. देश, समय, शक्ति और विद्या अर्थात् अपराध के अनुसार उचित दण्ड का ज्ञान, इन बातों को ठीक - ठीक विचार कर अन्याय का आचरण करने वाले लोगों में उस दण्ड को यथायोग्य रूप में प्रयुक्त करे ।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(तम्) उस दण्ड को (अन्यायी मनुष्यों में) (यथार्हतः) योग्यता के अनुसार (संप्रणयेत्) स्थापित करे, (देशकालौ शक्तिं च विद्यां च तत्वतः अवेक्ष्य) देश, काल, शक्ति, विद्या आदि को ठीक-ठीक विचारकर। अर्थात् अन्यायी पुरूषों को दण्ड देते समय, देश, काल, शक्ति आदि सभी बातों का विचार करना चाहिये। आँखा मूँदकर एक सा दण्ड नहीं देना चाहियें। क्योकि दण्ड का तात्पर्य सुधार है, बइला लेना नहीं ।
 
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