Manu Smriti
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तस्यार्थे सर्वभूतानां गोप्तारं धर्मं आत्मजम् ।ब्रह्मतेजोमयं दण्डं असृजत्पूर्वं ईश्वरः ।।7/14

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
उस राजा के लिए सृष्टि के प्रारम्भ में ही ईश्वर ने सब प्राणियों की सुरक्षा करने वाले ब्रह्मतेजोमय अर्थात् शिक्षाप्रद और अपराधनाशक गुण वाले धर्मस्वरूपात्मक दण्ड को रचा ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
उस राजा की सहायता के लिए परमेश्वर ने सब प्राणियों के रक्षकर, धर्मस्वरूप, सदैव उसके साथ रहने वाले, तथा ब्राह्मणवत् तेजःस्वरूप दण्ड को पहले निर्माण किया।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
तस्य अर्थें) उस -धर्म के पालन के लिये (पूर्वम्) आदि सृष्टि में (ईश्वरः) ईश्वर ने (दण्डम् असृजत्) दण्ड-विधान को बनाया। वह दण्ड-विधान कैसा है ? (सर्वभूतानां गोप्तारम्) सब प्राणियों का रक्षक हैं (ब्रह्म तेजोमयम्) ब्रह्म का सा उसमें तेज है, (आत्मजं धर्मम्) स्वयं ईश्वर से उत्पन्न हुआ धर्म हैं
 
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