Manu Smriti
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यथेदं उक्तवाञ् शास्त्रं पुरा पृष्टो मनुर्मया ।तथेदं यूयं अप्यद्य मत्सकाशान्निबोधत । ।1/119
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
भृगुजी कहते हैं कि जिस प्रकार हमने इस शास्त्र को मनुजी से पूछा और उन्होंने कहा, उसी तरह आप लोग भी हमसे सुनिये-
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
१।११९ वां श्लोक निम्न आधार पर प्रक्षिप्त है - इस श्लोक में कहा है कि ‘जैसे मनु ने इस शास्त्र को मेरे से कहा, वैसे ही मेरे से तुम सब जानो’ । इससे स्पष्ट है कि यह श्लोक मनु से भिन्न किसी दूसरे ने बनाकर मिलाया है । और यह श्लोक भी पूर्वापर - संगति से मेल नहीं खाता । १।११० श्लोक में तथा १।१२० श्लोक में धर्म का वर्णन है, यह श्लोक उस प्रकरण से विरूद्ध है और इस श्लोक में ‘शास्त्र’ अब्द का प्रयोग भी इसे अर्वाचीन सिद्ध कर रहा है । और महर्षियों ने (१।१-४) श्लोकों में मनु जी से धर्म विषयक जिज्ञासा की थी, अतः उत्तर भी मनु जी का ही होना चाहिए । किन्तु इस श्लोक में किसी अन्य भृगु आदि को ही प्रवचन करने वाला माना है, अतः पूर्व श्लोकों में कहे वचनों से यह विरूद्ध है ।
 
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