Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वही राजा समयानुसार अपने बल से प्रत्येक देवता के कार्य को मनुष्य-समूह के अर्थ करता है और उस समय वह (राजा) उसी देवता के तुल्य है।
टिप्पणी :
1-श्लोक 10 में रूप धारण करने से यह तात्पर्य है कि राजा पालन करने के समय इन्द्र व न्याय समय यमराज तथा शिक्षा प्रचार के समय सूर्य आदि का रूप हो जाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. ‘‘और जो अपने से अग्नि, वायु, सूर्य, सोम, धर्म, प्रकाशक, धनवर्द्धक, दुष्टों का बन्धनकत्र्ता, बड़े ऐश्वर्य वाला हो वही सभाध्यक्ष सभेश होने योग्य होवे ।’’
(स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
वह राजा अपने प्रभाव के कारण कभी अग्नि के समान गुणों वाला (७।४) और वायु के गुणों वाला सूर्य के समान चन्द्र के समान यम के समान न्यायकारी ऐश्वर्य - सम्पन्न वरूण के समान और कभी वह इन्द्र के समान स्वरूप धारण करता है ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
एवं, उस राजा को अपने सामर्थ्य से अग्नि, वायु, सूर्य, चन्द्र, मृत्यु, पूर्णिमा, मेघ और विद्युत् होना चाहिये।१
टिप्पणी :
१. इस आज्ञा का मूल मन्त्र ‘सोमस्य राज्ञो वरुणास्य धर्मणि’ आदि है। उसकी व्याख्या मेरे बनाए निरुक्त-भाष्य के ६६८ पृष्ठ पर देखें।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
राजा अपने प्रभाव के अनुसार अग्नि, वायु, सूर्य, सोम, धर्मराट, कुबेर, वरूण और इन्द्र है। अर्थात् वही राजा है। जिसमें ऐसे गुण हों।