Manu Smriti
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ब्राह्मं प्राप्तेन संस्कारं क्षत्रियेण यथाविधि ।सर्वस्यास्य यथान्यायं कर्तव्यं परिरक्षणम् ।।7/2

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
क्षत्रिय, यथाविधि यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण कर वेदारम्भादि संस्कारों को करके अपनी प्रजा के रक्षार्थ न्याय से विरत (लगा) रहे, यथाशक्ति अन्याय न करें।
टिप्पणी :
1-श्लोक 10 में रूप धारण करने से यह तात्पर्य है कि राजा पालन करने के समय इन्द्र व न्याय समय यमराज तथा शिक्षा प्रचार के समय सूर्य आदि का रूप हो जाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जैसा परम विद्वान् ब्राह्मण होता है वैसा विद्वान् सुशिक्षित होकर क्षत्रिय को योग्य है कि इस सब राज्य की रक्षा न्याय से यथावत् करे । (स० प्र० षष्ठ समु०)
टिप्पणी :
पूर्ण विधि के अनुसार अर्थात् उपनयन में दीक्षित होकर समावर्तनकाल तक ब्रह्मचर्य पालन करते हुए.......
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
क्षत्रिय को चाहिये कि वह परम विद्वान् ब्राह्मण की तरह अपने को विद्या-सुशिक्षा से संस्कृत बनाकर इस सब राज्य की रक्ष न्यायपूर्वक यथावत् करे।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(यथाविधि ब्राह्म संस्कारं प्राप्तेन क्षत्रियेण) जिस क्षत्रिय को वैदिक विद्धि से राजा बनाया गया हो, (सर्वस्य अस्य यथान्यायं परिरक्षणम् कर्तव्यम्) उसको चाहिये कि न्यायपूर्वक प्रजा की रक्षा करे।
 
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