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धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः ।धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ।।6/92

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
धर्म के दश लक्षण - ९२. पहिला लक्षण - सदा धैर्य रखना, दूसरा - (क्षमा) जो कि निन्दा - स्तुति मान - अपमान, हानि - लाभ आदि दुःखों में भी सहनशील रहना; तीसरा - (दम) मन को सदा धर्म में प्रवृत्त कर अधर्म से रोक देना अर्थात् अधर्म करने की इच्छा भी न उठे, चैथा - चोरीत्याग अर्थात् बिना आज्ञा वा छल - कपट, विश्वास - घात वा किसी व्यवहार तथा वेदविरूद्ध उपदेश से पर - पदार्थ का ग्रहण करना, चोरी और इसको छोड देना साहुकारी कहाती है, पांचवां - राग - द्वेष पक्षपात छोड़ के भीतर और जल, मृत्तिका, मार्जन आदि से बाहर की पवित्रता रखनी, छठा - अधर्माचरणों से रोक के इन्द्रियों को धर्म ही में सदा चलाना, सातवां - मादकद्रव्य बुद्धिनाशक अन्य पदार्थ, दुष्टों का संग, आलस्य, प्रमाद आदि को छोड़ के श्रेष्ठ पदार्थों का सेवन, सत्पुरूषों का संग, योगाभ्यास से बुद्धि बढाना; आठवां - (विद्या) पृथिवी से लेके परमेश्वर पर्यन्त यथार्थ ज्ञान और उनसे यथायोग्य उपकार लेना; सत्य जैसा आत्मा में वैसा मन में, जैसा वाणी में वैसा कर्म में वर्तना इससे विपरीत अविद्या है, नववां - (सत्य) जो पदार्थ जैसा हो उसको वैसा ही समझना, वैसा ही बोलना, वैसा ही करना भी; तथा दशवां - (अक्रोध) क्रोधादि दोषों को छोड़ के शान्त्यादि गुणों का ग्रहण करना धर्म का लक्षण है । (स० प्र० पंच्चम समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
सदा धैर्य रखना; निन्दा-स्तुति, मानापमान, हानिलाभ आदि दुःखों में भी सहनशील रहना; मन को सदा धर्म में प्रवृत्त कर अधर्म से रोक देना; बिना आज्ञा से, छल-कपट से, विश्वासघत से, वा वेदविरुद्ध उपदेश से पर-पदार्थ का ग्रहण करना; राग-द्वेष-पक्षपात छोड़ के भीतर, और जल, मृत्तिका, मार्जन आदि से बाहर की पवित्रता रखना; इन्द्रियों को अधर्माचरणों से रोक के धर्म में ही सदा चलाना; मादक द्रव्य व बुद्धिनाशक अन्य पदार्थ, दुष्टों का संग आलस्य प्रमाद आदि को छोड़ के श्रेष्ठ पदार्थों का सेवन, सत्पुरुषें का संग, और योगाभ्यास से बुद्धि को बढ़ाना; पृथिवी से लेके परमेश्वर पर्यन्त के पदार्थों का यथार्थज्ञान और उन से यथायोग्य उपकार लेना; जैसा आत्मा में वैसा मन में, जैसा मन में वैसा वाणी में, जैसा वाणी में वैसा कर्म में सत्य ही सत्य बर्तना; क्रोध को छोड़ के शान्ति का धारण करना-ये दस धर्म के लक्षण हैं।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
धर्म के दस लक्षण यह है:- धृति (धैर्य),क्षमा, दम, अस्तेय (चोरी न करना),शौच (सफाई), इन्द्रिय ग्रिह, घी (बुद्धि), विद्या, सत्य, अक्रोध (क्रोध न करना)।
 
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