Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. इसलिए ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यासियों को योग्य है कि प्रयत्न से दश लक्षणयुक्त निम्नलिखित धर्म का सेवन नित्य करें ।
(सं० प्र० पंच्चम समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इन ब्रह्मचारी आदि चारों ही आश्रमवासी द्विजों को चाहिए कि वे नित्य प्रयत्न से दश लक्षणयुक्त धर्म का सेवन किया करें।