Manu Smriti
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चतुर्भिरपि चैवैतैर्नित्यं आश्रमिभिर्द्विजैः ।दशलक्षणको धर्मः सेवितव्यः प्रयत्नतः ।।6/91

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. इसलिए ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यासियों को योग्य है कि प्रयत्न से दश लक्षणयुक्त निम्नलिखित धर्म का सेवन नित्य करें । (सं० प्र० पंच्चम समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
इन ब्रह्मचारी आदि चारों ही आश्रमवासी द्विजों को चाहिए कि वे नित्य प्रयत्न से दश लक्षणयुक्त धर्म का सेवन किया करें।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इन चारों आश्रम वालों को चाहिये कि नित्य दस लक्षण वाले धर्म का पालन करते रहे।
 
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