Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. जैसे सब बड़े - बड़े नद और नदी सागर में जाकर स्थिर होते हैं वैसे ही सब आश्रमी गृहस्थ ही को प्राप्त होके स्थिर होते हैं ।
(सं० वि० गृहाश्रम प्र०)
टिप्पणी :
‘‘जैसे नदी और बड़े - बड़े नद तब तक भ्रमते ही रहते हैं, जब तक समुद्र को प्राप्त नहीं होते; वैसे गृहस्थ ही के आश्रय से सब आश्रम स्थिर रहते हैं । बिना इस आश्रम के किसी आश्रम का कोई व्यवहार सिद्ध नहीं होता ।’’
(स० प्र० चतुर्थ समु०)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जैसे, नदी और बड़े-बड़े नद सागर में जाकर स्थिर होते हैं, वैसे ही सब आश्रमी गृहस्थ ही को प्राप्त होके स्थिर होते हैं। (सं० वि० गृहाश्रम)।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जैसे सब नदी, नाले समुद्र में जाकर ही ठहरते है। उसी प्रकार सब आश्रम वाले गृहस्थ ही के आश्रय से स्थिर रहते हैं।