Manu Smriti
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सर्वेऽपि क्रमशस्त्वेते यथाशास्त्रं निषेविताः ।यथोक्तकारिणं विप्रं नयन्ति परमां गतिम् ।।6/88

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो ब्राह्मण शास्त्र विधि से इन चारों आश्रमों का सेवन करता है वह परमगति अर्थात् मोक्षपद को लाभ करता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. इन सबका क्रमानुसार शास्त्रोक्त विधानों के अनुसार पालन करने पर कत्र्तव्यों का यथोक्त विधि से पालन करने वाले द्विज को उत्तम गति की ओर ले जाते हैं ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यासी, ये चारों पृथक्-पृथक् आश्रम गृहस्थश्रम से उत्पन्न होते हैं। इसलिए, वेद और स्मृति के प्रमाण से इन सभी आश्रमों के बीच में गृहस्थाश्रम श्रेष्ठ कहलाता है, क्योंकि यही आश्रम ब्रह्मचारी आदि अन्य तीनों आश्रमों का धारण-पालन करता है। (सं० वि० गृहाश्रम)।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यह सब शास्त्र -विधि से क्रम-पूर्वक पालन किये जाने से विद्वान् को परमगति को प्राप्त करा देते है।
 
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